मुर्गीपालन शुरू करने से पहले महत्वपूर्ण जानकारी
मुर्गी फार्म खोलने से पहले वैज्ञानिक जानकारी लेना अति आवश्यवक है। पहले छोटे फार्म से शुरू करें धीरे-धीरे बडा फार्म विकसित करें। चूजे हमेशा विश्वसनीय प्रमाणित हेचरी से ही लेें। पोल्ट्री फार्म दो प्रकार के होते है। ब्रायलर और पोल्ट्र पालन।
मुर्गीपालन के लाभ:
बहुत ही कम लागत पर यह व्यवसाय शुरू कर सकते है। अधिक भूमि, महंगे भवन की इसमें आवश्यकता नहीं होती। आम आदमी भी यह व्यवसाय कर सकता है।
अतिरिक्त आय प्रदान करने के साथ-साथ परिवार के सदस्यों को पौष्टिक आहार भी मिलता है क्योंकि अण्डे व मांस में उच्च गुणों वाले प्रोटीन व विटामिन उपलब्ध होते।
रसोई घर में बचे हुये अनाज व सब्जी का सदुपयोग मुर्गी आहार के रूप में किया जा सकता है।
मुर्गी से प्राप्त खाद में नाईटेªट/यूरिया की मात्रा अधिक होती है जिसका फसलों में सुदपयोग किया जा सकता है तथा पैदावार बढ़ाई जा सकती है।
मुर्गी उत्पाद जैसे अण्डे, मांस के विक्रय में खास समस्या का सामना नहीं करना पड़ता क्योंकि अण्डे व मांस की मांग हर क्षेत्र में काफी है।
मुर्गीफार्म के लिए स्थान का चयन:
मुर्गीपालन गांव या शहर से बाहर मेन रोड से दूर हो, पानी व बिजली की पर्याप्त व्यवस्था हो। फार्म हमेशा ऊँचाई वाले स्थान पर ही बनायें ताकि आसपास जल भराव न हो। दो पोल्ट्री फार्म एक दूसरे के पास न हो। फार्म की लम्बाई पूरब से पश्चिम की ओर हो। मध्य में ऊँचाई 12 व साईड में 8 फीट हो। चैड़ाई अधिकतम 25 फीट हो तथा शेड का अंतर कम से कम 20 फीट होना चाहिए। एक शेड में हमेशा एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए। आल-इन-आल आउट पद्धति का पालन करें। शेड तथा बर्तनों की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
मुर्गियों की गृहव्यवस्था:
सामान्यतः मुर्गियों या तो फर्श पर जिस पर बुरादे इत्यादि का बिछौना पड़ा हो (डीप लीटर) या पिंजरों में रखी जा सकती है। ब्रायलर प्रायः फर्श पर डीप लीटर में ही पाले जा सकते है। जबकि अण्डे देने वाली मुर्गियों को पिजरों में रखा जाना अधिक लाभप्रद रहता है क्योंकि अधिक उत्पादन कम दाना खिलाकर प्राप्त किया जा सकता है और बीमारियों से रोकथाम भी अच्छी तरह और सस्ते में की जा सकती है। शेड मंे हवा का आवागमन सही तरीके से हो। अच्छी धूप शैड के अन्दर तक आती हो। हवा का रूख शैड की ओर न हो। पानी की व्यवस्था आदि टीक तरह से हो। ठण्ड के समय खिडकियाँ बंद करने की व्यवस्था होनी चाहिए। शैड में तापमान बनाये रखने के लिए ब्रुडिंग की आवश्यकता पड़ती है। बिजली के बल्ब जमीन से 2 फुट उंचाई पर लगायें। ब्रुडर को चूजे के आगमन से 40 घंटे पहले चालू कर दें। मुर्गियों के लिए शैड बनाते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए की इस पर अत्यधिक व्यय न हो।
सही नस्ल के चूजों की प्राप्ति:
मुर्गी पालन की सफलता मुख्यतः अच्छी नस्ल के चूजों के प्राप्त करने, सस्ता, संतुलित और पर्याप्त दाने की उपलब्धता, सही और उपयुक्त गृह व्यवस्था और सही रख रखाव, बीमारियों से रोकथाम तथा मृत्युदर कम करने पर निर्भर करती है। मुर्गीपालक का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा अण्डे लेना होना चाहिए तथा कम आयु 6-8 सप्ताह तक कि.ग्रा. प्राप्त करना होता है। मृत्यु दर कम रखकर और दवाईयों, दाने पर होने वाले व्यय को कम करके ऐसे व्यवसाय से होने वाले लाभ को बढाया जा सकता है।
फार्म में प्रयोग आने वाले यंत्र
फार्म में चूजों और मुर्गियों के लिए दाने फीडर और पानी के बर्तनों की व्यवस्था करें। ध्यान रखें बर्तन गन्दे न हों साफ करते रहें। नये चूजों की व्यवस्था में आने वाला यन्त्र ब्रुडर, अण्डों की ट्रे, चोंच काटने वाला यंत्र, टीकाकरण के लिए वैक्सीनेटर इत्यादि जरूरी है।
आहार
मुर्गी पालन में सर्वाधिक व्यय दाने पर होता है। इसलिए आहार में विभिन्न तत्व जैसे प्रोटीन, ऊर्जा, विटामिन, खनिज पदार्थ और एमिनो एसिड इत्यादि न केवल पर्याप्त मात्रा और अनुपात में उपलब्ध रहें दाना सस्ता भी होना चािहए। चूजों के लिए बाजार से स्टार्टर राशन और फिनिशर राशन अलग-अलग ब्रांडों के नाम से उपलब्ध है। दाना खरीदते समय उसका प्रकार, गुणवता, ऊर्जा, प्रोटीन, और अन्य खाद्य तत्वों की उपलब्धता दाने में नमी इत्यादि को प्रमाणित करा देना चाहिए। इसके अतिरिक्त मुर्गियों का दाना सामान्य अनाजों जैसे मक्का, गेहूं, जौ, बाजरा, इत्यापदं चैकर धान की चुन्नी, खलों में सोयाबीन, मूंगफली, सूरजमुखी, तिल इत्यादि, मछली का चुरा को खनिज मिश्रण कर खुद भी तैयार किया जा सकता है। दानों में रोगों से बचाव के लिए दवाईयां जैसे काक्सिडी या निरोधक दवाईयां या एंटीबायोटिक्स भी प्राय मिलाई जाती है। अण्डे देने वाली मुर्गियों को कैल्शियम की अधिक जरूरत होती है जिसे पूरा करने के लिए 3-4 प्रतिशत चूने का पत्थर, शैल ग्रिट, चाक इत्यादि दाने में या अलग से खिलाना चाहिए।
मुर्गियों चूजों में रोगों का फैलाव
मुर्गियों में विभिन्न बीमारियों से केवल अत्यधिक मृत्युदर ही होती है। इससे मुर्गीपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। मुर्गियों में अनेक बीमारियां पाई जाती है। जिनमें कोकसिडीयोसिस, रानीखेत, चेचक, पुलोराम, टाईफाइड, हैजा, मैरेक्स, कालीबैसिलोसिस, माइकोपलासमोसिस, परजीविकृमी इत्यादि प्रमुख रोग है। जिससे मुर्गीपालकों को प्रति वर्ष भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इसके अतिरिक्त नरम ख्ेाप या बिना खेल के अण्डे आना, बाहय परजीवी, आन्तों या पंखों का खाना, और अधिक गर्मी या सर्दी का प्रभाव भी उनकी क्षमता को प्रभावित करता है। इन सभी बीमारियों से बचाव हेतु मुर्गी गृहों की सफाई एवं कीटाणु रहित करना, नये लाये गये चूजों की पर्याप्त रोग निरोधक क्षमता, बीमार मुर्गियों को अलग करके रोग निदान एवं उपचार करना और प्रमुख बीमारियों के विरूद्ध टीकाकरण करना विशेष लाभदायक है।
बीमारियों से बचाव
शैड को नये चूजे डालने से पूर्व 3-4 सप्ताह तक खाली रखना चाहिए तथा उसकी सफाई कर देनी चाहिए। पानी के बर्तनों का निरीक्षण करना चाहिए। बिजली की व्यवस्था ठीक प्रकार से होनी चाहिए। दीवारों फर्श पर चूना करें तथा फिनाइल , फार्मेलिन इत्यादि से धोकर कीटाणुं रहित करना चाहिये जहां तक सम्भव हो फार्म में एक ही किस्म के पक्षी रखें। फार्म पर बाहरी लोगों का आवगमन कम से कम करें। कुत्ता, चूहा, गिलहरी, देशी मुर्गी आदि को शैड में न घुसने दें। मरे हुये चूजे, वैक्सीन के खली बोतल को जलाकर नष्ट कर दें। पानी में ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग करें।
मुर्गियों का गर्मी से बचाव कैसे करे ?:
गर्मियों में पानी के बर्तनों की संख्या बढ़ा दें क्योंकि मुर्गियां गर्मी में बर्तन के चारों ओर बैठ जाती है।
गर्मी में मुर्गियों को एक घण्टे भी पानी न मिले तो वह हीट स्ट्रोक से उनकी मृत्यु हो सकती है।
तेज गर्मी के समय शेड की खिडकियों पर टाट को गीला करके लटका दें ध्यान रखें कि टाट खिडकियों से चिपके नही।
मुर्गियों को गर्मी में पानी में मिलाकर विटामिन और गुड आदि देना लाभदायक रहता है। ध्यान
रखें कि दाना शाम तक खत्म हो जाना चाहिए अन्यथा फैंक दें।
मुर्गी में गर्मी के लक्षण दिखाई दें तो उसे उठाकर पानी से एक डुबकी देकर छांव में रख दें और स्वस्थ होने पर वापस बाडे में छोड दें। यह प्रक्रिया तुरंत की जानी चाहिए। ऐसाी अवस्था में नहीं तो मुर्गी मर सकती है।
उत्पादन कम दाना खिलाकर प्राप्त किया जा सकता है और बीमारियों से रोकथाम भी अच्छी तरह और सस्ते में की जा सकती है। शेड मंे हवा का आवागमन सही तरीके से हो। अच्छी धूप शैड के अन्दर तक आती हो। हवा का रूख शैड की ओर न हो। पानी की व्यवस्था आदि टीक तरह से हो। ठण्ड के समय खिडकियाँ बंद करने की व्यवस्था होनी चाहिए। शैड में तापमान बनाये रखने के लिए ब्रुडिंग की आवश्यकता पड़ती है। बिजली के बल्ब जमीन से 2 फुट उंचाई पर लगायें। ब्रुडर को चूजे के आगमन से 40 घंटे पहले चालू कर दें। मुर्गियों के लिए शैड बनाते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए की इस पर अत्यधिक व्यय न हो।
सही नस्ल के चूजों की प्राप्ति:
मुर्गी पालन की सफलता मुख्यतः अच्छी नस्ल के चूजों के प्राप्त करने, सस्ता, संतुलित और पर्याप्त दाने की उपलब्धता, सही और उपयुक्त गृह व्यवस्था और सही रख रखाव, बीमारियों से रोकथाम तथा मृत्युदर कम करने पर निर्भर करती है। मुर्गीपालक का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा अण्डे लेना होना चाहिए तथा कम आयु 6-8 सप्ताह तक कि.ग्रा. प्राप्त करना होता है। मृत्यु दर कम रखकर और दवाईयों, दाने पर होने वाले व्यय को कम करके ऐसे व्यवसाय से होने वाले लाभ को बढाया जा सकता है।
फार्म में प्रयोग आने वाले यंत्र
फार्म में चूजों और मुर्गियों के लिए दाने फीडर और पानी के बर्तनों की व्यवस्था करें। ध्यान रखें बर्तन गन्दे न हों साफ करते रहें। नये चूजों की व्यवस्था में आने वाला यन्त्र ब्रुडर, अण्डों की ट्रे, चोंच काटने वाला यंत्र, टीकाकरण के लिए वैक्सीनेटर इत्यादि जरूरी है।
मुर्गी फार्म खोलने से पहले वैज्ञानिक जानकारी लेना अति आवश्यवक है। पहले छोटे फार्म से शुरू करें धीरे-धीरे बडा फार्म विकसित करें। चूजे हमेशा विश्वसनीय प्रमाणित हेचरी से ही लेें। पोल्ट्री फार्म दो प्रकार के होते है। ब्रायलर और पोल्ट्र पालन।
मुर्गीपालन के लाभ:
बहुत ही कम लागत पर यह व्यवसाय शुरू कर सकते है। अधिक भूमि, महंगे भवन की इसमें आवश्यकता नहीं होती। आम आदमी भी यह व्यवसाय कर सकता है।
अतिरिक्त आय प्रदान करने के साथ-साथ परिवार के सदस्यों को पौष्टिक आहार भी मिलता है क्योंकि अण्डे व मांस में उच्च गुणों वाले प्रोटीन व विटामिन उपलब्ध होते।
रसोई घर में बचे हुये अनाज व सब्जी का सदुपयोग मुर्गी आहार के रूप में किया जा सकता है।
मुर्गी से प्राप्त खाद में नाईटेªट/यूरिया की मात्रा अधिक होती है जिसका फसलों में सुदपयोग किया जा सकता है तथा पैदावार बढ़ाई जा सकती है।
मुर्गी उत्पाद जैसे अण्डे, मांस के विक्रय में खास समस्या का सामना नहीं करना पड़ता क्योंकि अण्डे व मांस की मांग हर क्षेत्र में काफी है।
मुर्गीफार्म के लिए स्थान का चयन:
मुर्गीपालन गांव या शहर से बाहर मेन रोड से दूर हो, पानी व बिजली की पर्याप्त व्यवस्था हो। फार्म हमेशा ऊँचाई वाले स्थान पर ही बनायें ताकि आसपास जल भराव न हो। दो पोल्ट्री फार्म एक दूसरे के पास न हो। फार्म की लम्बाई पूरब से पश्चिम की ओर हो। मध्य में ऊँचाई 12 व साईड में 8 फीट हो। चैड़ाई अधिकतम 25 फीट हो तथा शेड का अंतर कम से कम 20 फीट होना चाहिए। एक शेड में हमेशा एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए। आल-इन-आल आउट पद्धति का पालन करें। शेड तथा बर्तनों की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
मुर्गियों की गृहव्यवस्था:
सामान्यतः मुर्गियों या तो फर्श पर जिस पर बुरादे इत्यादि का बिछौना पड़ा हो (डीप लीटर) या पिंजरों में रखी जा सकती है। ब्रायलर प्रायः फर्श पर डीप लीटर में ही पाले जा सकते है। जबकि अण्डे देने वाली मुर्गियों को पिजरों में रखा जाना अधिक लाभप्रद रहता है क्योंकि अधिक उत्पादन कम दाना खिलाकर प्राप्त किया जा सकता है और बीमारियों से रोकथाम भी अच्छी तरह और सस्ते में की जा सकती है। शेड मंे हवा का आवागमन सही तरीके से हो। अच्छी धूप शैड के अन्दर तक आती हो। हवा का रूख शैड की ओर न हो। पानी की व्यवस्था आदि टीक तरह से हो। ठण्ड के समय खिडकियाँ बंद करने की व्यवस्था होनी चाहिए। शैड में तापमान बनाये रखने के लिए ब्रुडिंग की आवश्यकता पड़ती है। बिजली के बल्ब जमीन से 2 फुट उंचाई पर लगायें। ब्रुडर को चूजे के आगमन से 40 घंटे पहले चालू कर दें। मुर्गियों के लिए शैड बनाते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए की इस पर अत्यधिक व्यय न हो।
सही नस्ल के चूजों की प्राप्ति:
मुर्गी पालन की सफलता मुख्यतः अच्छी नस्ल के चूजों के प्राप्त करने, सस्ता, संतुलित और पर्याप्त दाने की उपलब्धता, सही और उपयुक्त गृह व्यवस्था और सही रख रखाव, बीमारियों से रोकथाम तथा मृत्युदर कम करने पर निर्भर करती है। मुर्गीपालक का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा अण्डे लेना होना चाहिए तथा कम आयु 6-8 सप्ताह तक कि.ग्रा. प्राप्त करना होता है। मृत्यु दर कम रखकर और दवाईयों, दाने पर होने वाले व्यय को कम करके ऐसे व्यवसाय से होने वाले लाभ को बढाया जा सकता है।
फार्म में प्रयोग आने वाले यंत्र
फार्म में चूजों और मुर्गियों के लिए दाने फीडर और पानी के बर्तनों की व्यवस्था करें। ध्यान रखें बर्तन गन्दे न हों साफ करते रहें। नये चूजों की व्यवस्था में आने वाला यन्त्र ब्रुडर, अण्डों की ट्रे, चोंच काटने वाला यंत्र, टीकाकरण के लिए वैक्सीनेटर इत्यादि जरूरी है।
आहार
मुर्गी पालन में सर्वाधिक व्यय दाने पर होता है। इसलिए आहार में विभिन्न तत्व जैसे प्रोटीन, ऊर्जा, विटामिन, खनिज पदार्थ और एमिनो एसिड इत्यादि न केवल पर्याप्त मात्रा और अनुपात में उपलब्ध रहें दाना सस्ता भी होना चािहए। चूजों के लिए बाजार से स्टार्टर राशन और फिनिशर राशन अलग-अलग ब्रांडों के नाम से उपलब्ध है। दाना खरीदते समय उसका प्रकार, गुणवता, ऊर्जा, प्रोटीन, और अन्य खाद्य तत्वों की उपलब्धता दाने में नमी इत्यादि को प्रमाणित करा देना चाहिए। इसके अतिरिक्त मुर्गियों का दाना सामान्य अनाजों जैसे मक्का, गेहूं, जौ, बाजरा, इत्यापदं चैकर धान की चुन्नी, खलों में सोयाबीन, मूंगफली, सूरजमुखी, तिल इत्यादि, मछली का चुरा को खनिज मिश्रण कर खुद भी तैयार किया जा सकता है। दानों में रोगों से बचाव के लिए दवाईयां जैसे काक्सिडी या निरोधक दवाईयां या एंटीबायोटिक्स भी प्राय मिलाई जाती है। अण्डे देने वाली मुर्गियों को कैल्शियम की अधिक जरूरत होती है जिसे पूरा करने के लिए 3-4 प्रतिशत चूने का पत्थर, शैल ग्रिट, चाक इत्यादि दाने में या अलग से खिलाना चाहिए।
मुर्गियों चूजों में रोगों का फैलाव
मुर्गियों में विभिन्न बीमारियों से केवल अत्यधिक मृत्युदर ही होती है। इससे मुर्गीपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। मुर्गियों में अनेक बीमारियां पाई जाती है। जिनमें कोकसिडीयोसिस, रानीखेत, चेचक, पुलोराम, टाईफाइड, हैजा, मैरेक्स, कालीबैसिलोसिस, माइकोपलासमोसिस, परजीविकृमी इत्यादि प्रमुख रोग है। जिससे मुर्गीपालकों को प्रति वर्ष भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इसके अतिरिक्त नरम ख्ेाप या बिना खेल के अण्डे आना, बाहय परजीवी, आन्तों या पंखों का खाना, और अधिक गर्मी या सर्दी का प्रभाव भी उनकी क्षमता को प्रभावित करता है। इन सभी बीमारियों से बचाव हेतु मुर्गी गृहों की सफाई एवं कीटाणु रहित करना, नये लाये गये चूजों की पर्याप्त रोग निरोधक क्षमता, बीमार मुर्गियों को अलग करके रोग निदान एवं उपचार करना और प्रमुख बीमारियों के विरूद्ध टीकाकरण करना विशेष लाभदायक है।
बीमारियों से बचाव
शैड को नये चूजे डालने से पूर्व 3-4 सप्ताह तक खाली रखना चाहिए तथा उसकी सफाई कर देनी चाहिए। पानी के बर्तनों का निरीक्षण करना चाहिए। बिजली की व्यवस्था ठीक प्रकार से होनी चाहिए। दीवारों फर्श पर चूना करें तथा फिनाइल , फार्मेलिन इत्यादि से धोकर कीटाणुं रहित करना चाहिये जहां तक सम्भव हो फार्म में एक ही किस्म के पक्षी रखें। फार्म पर बाहरी लोगों का आवगमन कम से कम करें। कुत्ता, चूहा, गिलहरी, देशी मुर्गी आदि को शैड में न घुसने दें। मरे हुये चूजे, वैक्सीन के खली बोतल को जलाकर नष्ट कर दें। पानी में ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग करें।
मुर्गियों का गर्मी से बचाव कैसे करे ?:
गर्मियों में पानी के बर्तनों की संख्या बढ़ा दें क्योंकि मुर्गियां गर्मी में बर्तन के चारों ओर बैठ जाती है।
गर्मी में मुर्गियों को एक घण्टे भी पानी न मिले तो वह हीट स्ट्रोक से उनकी मृत्यु हो सकती है।
तेज गर्मी के समय शेड की खिडकियों पर टाट को गीला करके लटका दें ध्यान रखें कि टाट खिडकियों से चिपके नही।
मुर्गियों को गर्मी में पानी में मिलाकर विटामिन और गुड आदि देना लाभदायक रहता है। ध्यान
रखें कि दाना शाम तक खत्म हो जाना चाहिए अन्यथा फैंक दें।
मुर्गी में गर्मी के लक्षण दिखाई दें तो उसे उठाकर पानी से एक डुबकी देकर छांव में रख दें और स्वस्थ होने पर वापस बाडे में छोड दें। यह प्रक्रिया तुरंत की जानी चाहिए। ऐसाी अवस्था में नहीं तो मुर्गी मर सकती है।
उत्पादन कम दाना खिलाकर प्राप्त किया जा सकता है और बीमारियों से रोकथाम भी अच्छी तरह और सस्ते में की जा सकती है। शेड मंे हवा का आवागमन सही तरीके से हो। अच्छी धूप शैड के अन्दर तक आती हो। हवा का रूख शैड की ओर न हो। पानी की व्यवस्था आदि टीक तरह से हो। ठण्ड के समय खिडकियाँ बंद करने की व्यवस्था होनी चाहिए। शैड में तापमान बनाये रखने के लिए ब्रुडिंग की आवश्यकता पड़ती है। बिजली के बल्ब जमीन से 2 फुट उंचाई पर लगायें। ब्रुडर को चूजे के आगमन से 40 घंटे पहले चालू कर दें। मुर्गियों के लिए शैड बनाते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए की इस पर अत्यधिक व्यय न हो।
सही नस्ल के चूजों की प्राप्ति:
मुर्गी पालन की सफलता मुख्यतः अच्छी नस्ल के चूजों के प्राप्त करने, सस्ता, संतुलित और पर्याप्त दाने की उपलब्धता, सही और उपयुक्त गृह व्यवस्था और सही रख रखाव, बीमारियों से रोकथाम तथा मृत्युदर कम करने पर निर्भर करती है। मुर्गीपालक का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा अण्डे लेना होना चाहिए तथा कम आयु 6-8 सप्ताह तक कि.ग्रा. प्राप्त करना होता है। मृत्यु दर कम रखकर और दवाईयों, दाने पर होने वाले व्यय को कम करके ऐसे व्यवसाय से होने वाले लाभ को बढाया जा सकता है।
फार्म में प्रयोग आने वाले यंत्र
फार्म में चूजों और मुर्गियों के लिए दाने फीडर और पानी के बर्तनों की व्यवस्था करें। ध्यान रखें बर्तन गन्दे न हों साफ करते रहें। नये चूजों की व्यवस्था में आने वाला यन्त्र ब्रुडर, अण्डों की ट्रे, चोंच काटने वाला यंत्र, टीकाकरण के लिए वैक्सीनेटर इत्यादि जरूरी है।
No comments:
Post a Comment